सिर में हथोडे से कील ठोक लूँ
या कि बंदूक से गोली
इतना शोर बढ़ गया है अब
कि keyboard कि आवाज़ आने से पहले
सिर में घुसी आत्माओं कि आवाज़
मेरे ख्यालों,
मेरी कविताओं,
मेरी कहानियो को खा जाती है
वोह सब लोग जो अच्छे लगते थे
या बहुत ज़्यादा बुरे
वोह वक्त कि अलग अलग कब्रों से उठ कर
मेरे दिमाग के कोनों में
अपने drum , नगाडे , घंटे लेकर जमा हो गए हैं
एक बड़ा सा जलसा बनाके
वोह marchpast करते हैं
मेरे सारे गुनाह
जो उन्हें पहले पता नहीं थे
अब मेरे दिमाग कि काल कोठरी में घुसकर
बीन बीन कर निकाले हैं उन्होंने
हर बेयिमानी ,
हर चोरी,
हर धोका
जो मैंने छुप कर ख़ुद को,
दूसरों को दिया था
और जिसके दस्तावेज मैंने जला दिए थे अपने सिर में
बस सिर्फ़ उस आग से उठती हुई बू
मरे हुई कीड़ों कि बू कि तरह
नींद में बेचैन करती थी
वरना तो सब शांत ही था
इन घुसपैठ आत्माओं ने पता नहीं कैसे
दस्तावेजों कि राख से
सारे सबूत इकठे कर लिए
और बड़े बड़े banner, poster बना के
मेरे सिर कि दीवारों पे चिपका दिए हैं
मेरी कमजोर झूठी भावुकता
मेरे बनावटी दुःख
बेमतलब की हँसी
अजनबियों को दिखाए जाने वाले
बेहतरीन चहरे
सारे नए जुमले
और वोह सारी बेशर्मी
जो महसूस हुई थी
चहरे दिखाते समय
जुमले बोलते समय
यह सब उन banners पर टंगा है
मेरे दिमाग की दीवारों के सहारे
मेरे आम होने के गुनाह का सबूत
उनको नोचने कि भी कोशिश करता हूँ
तो दीवारों का कच्चा चूना उधड्ने लगता है
अब जब भी कुछ लिखने कि कोशिश करता हूँ
उन posters कि लिखावट
उन नगाडों का शोर
उन दस्तावेजों कि राख
मुझे गूंगा बना देती है
शरीर में बस एक बड़ा सा सिर
और एक छोटा सा कंकाल बचा है
बाकी सब अंग खाल के समेत
उन आवाजों को सुनते सुनते
जली राख को सूंघते सूंघते
गल गए हैं
अब हर आदमी जो मिलता है
सड़क पर, ट्रेन में , office में
लगता है मेरे दिमाग में चिपके पोस्टर पढ़ रहा है
और बहुत जल्दी इसकी आत्मा भी
इसके पसंद का बाजा उठा के
मेरे सिर में मेरी आंखो से होकर घुस जायेगी
अब में लोगों से नज़रे नहीं मिलाता
न बात करता हूँ, न दुआ सलाम
चुपचाप ऑफिस से घर और घर से ऑफिस
और ख़ास कर वोह लोग जो मुझे बचपन से जानते हैं
या उन दिनों से जब मैं ख़ुद
दूसरों के दिमाग में पोस्टर चिपकाता था
उनसे मैं बिल्कुल भी मुलाक़ात नहीं करता
डर लगता है कि मुझे देख कर हँसेंगे
खिल खिला के नहीं , बस धीरे से
कि "मुझे पता है, तुम्हारे अन्दर क्या हो रहा है "
पर फिर कभी कभी सिर्फ़ जांच करने के लिए
उनसे हात मिलाता हूँ, मुस्कुराता हूँ
यह जानने के लिए कि कहीँ यह सब मेरा भ्रम तो नहीं
और बाद में इस बात से डरता हूँ
कि शायद वोह समझ गए हैं कि मैं जांच कर रहा था
मुझे फ़ोन कि घंटी,
messenger कि आवाज़,
और gtalk कि green dot
इन सब से अब डर लगता है
मैं वापस उन दिनों मैं जाना चाहता हूँ
जब मैं जादू करता था , जादू दिखाता था
जादू करते रहना
आत्मा कि शांति के लिए बहुत ज़रूरी है
वरना जादू खत्म होते ही
यह सब अगड़म-बगड़्म लोग
दिमाग मैं घुस कर
धीरे धीरे उसे घोल के पी जाते हैं
और बस रह जाती है
तुम्हारे गुनाहों के जले दस्तावेजों कि राख
जल्दी ही किसी दिमाग मैं घुसना होगा
जल्दी ही किसी सिर में पोस्टर चिपकाने होंगे
या पहले जिसके सिर में चिपकाये थे उससे मिलना होगा
और सबसे ज़रूरी है
जल्दी ही जादू करना पड़ेगा
क्योंकि जादू करते रहने से
अन्दर भरी आत्माएं शांत रहती हैं
ढोल नगाडे सब बंद हो जाते हैं
और दीवारों पर कोई पोस्टर नहीं चिपकते
बल्कि सच तो यह है
जब यह टाईप किया मैंने
जादू हो गया
आत्मा शांत हो गई
Wednesday, October 17, 2007
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