कितनी बार तुम्हें मना किया
माया को मत आने दो इस घर में
पर शायद माया से यह तुम्हारा बदला था
घर बुलाकर उसे परायेपन का एहसास कराना
फिर कभी-कभी लगता था
मुझे समझने के लिए,
माया को समझना ज़रूरी है तुम्हारे लिए
उसे अपनाकर तुम,खुद अपनाया जाना चाहती थीं
एक रोज़ auto में
बहुत देर मेरे चुप रहने पर
तुमने दबे होंठों से मेरे मुस्कुराने के लिए कहा था
"मुझे भी bike चलाना सीखना hai"
और फिर ऐसे हँसी थीं जैसे
बच्चे को खेल में जिताके माँ हँसती है
ऐसा लगा था कि तुमने मुझसे कहा हो
"देखो तुम्हारी माया थोड़ी बहुत मुझ में भी है कहीं "
तुम्हें ज़ोर से गले लगाया था, प्यार किया था
फिर तुमने हँसी भरी आवाज़ में पूंछा था
" यह मेरे लिए है, या माया के लिए "
मैंने बिना सोचे बोला "माया के लिए "
"बडे कमीने हो तुम " , हँस कर मेरे कंधे पर से कहा था तुमने
आज लगता है वोह मज़ाक नहीं, सच में गाली थी तुम्हारी ।
Friday, March 30, 2007
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3 comments:
" यह मेरे लिए है, या माया के लिए "
मैंने बिना सोचे बोला "माया के लिए "
Yeh main na tha,yeh mujhe maya ne banaya tha.
"बडे कमीने हो तुम "
Yeh woh na thi,yeh use mere andar chhupi maya ne banaya tha.
for MAAYA after watching IJAAZAT.........
इसमें बेचारे गुलाब का क्या कसूर,
जो ज़िन्दगी भर कांटों के साथ रहता है,
और फिर ज़ुदा होता है इस चाहत में,
कि शायद अब नाज़ुक हाथों में जायेगा,
और फिर मुरझा जाता है,
देखकर उन्हीं हाथों की बेरुखी॥
इसमें बेचारे पतंगे का क्या कसूर,
जो समझ नहीं पाता है,
कंदील पर रखे दिये की साजिश को,
जो खुद तो चांद से रोशनी लेकर,
ठंडा होता रहता है,
और वो बेचारा पतंगा,
खाक हो जाता है,
अपनी ही मोहब्बत की आग में॥
इसमें बेचारी रेत का क्या कसूर,
जो दिन भर तपती है इसी चाहत में,
कि कभी तो जलते सूरज से मिल पायेगी,
और जब सूरज उससे आकर मिलता है,
तो ठण्डी हो जाती है ऐसे,
जैसे मुर्दा हो गयी हो॥
wonderful poem...
may i know who is this anony...
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